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कौशल विकास पढ़ाई के साथ ही क्यों होना चाहिए

By Sunil Dahiya

अपने युवाओं को हम जब तक इक्कसवीं सदी की जरूरतों के अनुसार आवश्यक कौशल से युक्त नहीं करेंगे तब तक कौशल की मौजूदा कमी भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करना जारी रखेगी।

तेजी से बदलती रोजगार बाजार की जरूरतों में अब कुशल कामगारों की भारी आवश्यकता है। भारत में युवाओं की आबादी दुनिया भर में सबसे ज्यादा है और इनमें आधे 25 साल से कम के हैं। इसका उल्लेख भारत के जनसांख्यिकीय लाभ का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है लेकिन तथ्य यह है कि हर महीने 1.3 मिलियन लोग काम करने वालों में शामिल हो रहे हैं।

सवाल यह उठता है कि अगर हम इन्हें अच्छी नौकरी के योग्य नहीं बना पाए और उनका कौशल नहीं निखार पाए तो जनसांख्यिकीय लाभ की यह स्थिति जनसांख्यिकीय विपदा में बदल जाएगी।

‘कौशल’ की परिभाषा

इतने वर्षों में ‘कौशल’ की परिभाषा में भी बदलाव आ गया है। पर शिक्षा क्षेत्र छात्रों को उद्योग की जरूरतों के अनुसार तैयार करे इसकी आवश्यकता जितनी महत्वपूर्ण आज है उतनी कभी नहीं रही। सच तो यह है कि नौकरी करने की योग्यता दिलाने वाले 90 प्रतिशत मौके व्यावसायिक कौशल वाले होते हैं। ऐसे में हमारे यहां के 20 प्रतिशत स्नातकों को तो नौकरी मिल जाती है लेकिन बाकी पेशेवर कौशल के बिना उपयुक्त नौकरी से वंचित रह जाते हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि भारतीय स्कूली शिक्षा में सरकारी निवेश से भारी बदलाव किया जाए और खास काम और कौशल के लिए खास पेशेवर शिक्षकों की एक नई पीढ़ी, अपने किस्म की अनूठी सुविधाओं के साथ एक ऐसी मशीन की तरह काम करे जो उद्योग और नौकरी के लिए तैयार, कामगार बनाए।

स्कूल प्रणाली

एक तरफ तो स्कूली शिक्षा टेक्स्टबुक से हाईब्रिड समाधान की ओर बढ़ रही है। शिक्षक केंद्रित होती थी पर अब सीखने वाले पर केंद्रित होती है। शिक्षक का काम सब कुछ ठीक से पूरा कराना होता है और डिलीवरी की विधि ब्लैक बोर्ड से लेकर प्रोजेक्टर मोड तक है। दूसरी ओर, यह भी लगता है कि इस पूरे मामले में कौशल बढ़ाना एक तरफ रह जाता है और पढ़ाई मुख्यधारा में नहीं रहती है। यह एक ऐसे समाधान की शुरुआत हो सकतीहै जो एक ऐसे कुशल कामगारों का समूह बनाएगा जो अपने काम से प्यार करता होगा।

•आज सीखना चाहने वाला भिन्न किस्म की शिक्षा प्राप्त कर सकता है क्योंकि सूचनाओं की भरमार है।

•मोबाइल उपकरण हर किसी के पास पहुंच रहे हैं और इसमें यह मौका है कि बच्चों के लिए स्कूल में स्कूल स्तर का ही कौशल विकास शुरू किया जाएगा।

हमारी शिक्षा प्रणाली में एक भारी परिवर्तन, समय की आवश्यकता है। हमें अपने बच्चों को कम आयु में ही कौशलयुक्त करने की शुरुआत करनी चाहिए और ऐसा हो सके इसके लिए जरूरी है कि कौशल विकास के पाठ्यक्रम के रूप में विकल्प माध्यमिक और प्राथमिक स्तर पर उपलब्ध हो। और छह साल का बच्चा व्यक्तित्व विकास, संचार के कौशल, टीम वर्क और इंटरपर्सनल स्किल्स से संबंधित प्रशिक्षण के साथ शुरुआत करे।

व्यावसायिक विषय सेकेंड्री स्कूल के स्तर पर जोड़े जा सकते हैं। उदाहरण के लिए गाड़ियों में दिलचस्पी रखने वाले बच्चे के लिए गाड़ियों की मरम्मत से शुरूआत की जा सकती है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे ऑटोमोबाइल इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित किया जा सकता है। कायदे से कौशल विकास का काम प्राथमिक स्कूल के बाद 12 साल की उम्र में शुरू होना चाहिए। इसलिए, कौशल विकास और औपचारिक शिक्षा का एकीकरण आवश्यक है ताकि कौशल विकास का लाभ हो, उसे काम मिले। दूसरे शब्दों में कौशल विकास और पढ़ाई साथ-साथ चलनी चाहिए।

भारतीय शिक्षा प्रणाली

इस समय भारतीय शिक्षा प्रणाली सिर्फ अकादमिक प्रकृति की है और कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने तक बमुश्किल कोई सुविज्ञता हासिल होती है। किसी खास क्षेत्र में बच्चे की दिलचस्पी का पता लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है। दूसरी ओर, ऐसे छात्र भी हैं जो धन की कमी या खराब प्रदर्शन के कारण औपचारिक शिक्षा प्रणाली के साथ नहीं चल पाते हैं। ऐसे छात्रों के पास सम्मानजनक जीवन जीने का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। कम आयु में ही कौशल प्रदान करने की शुरुआत से इन छात्रों को भिन्न मौकों की ओर भेजने की दिशा में बड़ा काम होगा। इसका देश के सामाजिक आर्थिक ताने-बाने पर बड़ा प्रभाव होगा।

भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन कैसे लाएं?

शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए हमें पहले दो मुख्य बाधाओं से निपटना होगा- (1) कुशल फैकल्टी की कमी (2) कौशल देने के लिए जगह। इसके बाद उद्योग के कुशल प्रशिक्षकों की आवश्यकता होगी जो छात्रों का मार्गदर्शन कर सकें उन्हें प्रशिक्षण दे सकें। फैकल्टी को उद्योग से वाकिफ होना होगा। इसी तरह, छात्रों को अपने पसंदीदा क्षेत्र में सभी सुविधाएं चाहिएं होंगी। इसके लिए स्कूलों को उद्योग से जुड़ा होना चाहिए और यह एक औपचारिक तथा वयवस्थित ढंग से होना चाहिए। जहां उद्योग के विशेषज्ञों के नियमत सत्र हों और मौके पर प्रशिक्षण की सुविधाएं मिलें।

हमें देश में मौजूदा कुछ सर्वश्रेष्ठ व्यवहारों को भी अपनाना चाहिए। इसका उदाहरण जर्मनी है जहां छात्र शुरू में अपना समय 80:20 के अनुपात में गुजारते हैं और यह कक्षा तथा : उद्योग में होता है। अंतिम वर्ष में यह अनुपात उलट जाता है। इससे अमूमन 18 साल में अच्छे वेतन पर नौकरी मिल जाती है तथा तकनीकी शिक्षा जारी रखने का विकल्प भी होता है।

Source: Outlook Hindi